21-11-84  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

स्वदर्शन धारी ही दिव्य दर्शनीय मूर्त

अव्यक्त बापदादा अपने स्वदर्शन चक्रधारी बच्चों प्रति बोले-

आज बापदादा अपने विश्व प्रसिद्ध स्वदर्शन धारी, दिव्य दर्शनीय सिद्धि स्वरूप बच्चों को देख रहे हैं। स्वदर्शनधारी ही विश्व-दिव्य दर्शनीय बनते हैं। स्वदर्शनधारी नहीं तो दिव्य दर्शनीय मूर्त भी नहीं। हर कदम में, हर संकल्प में स्वदर्शन से ही दिव्य दर्शन करा सकते हो। स्वदर्शन नहीं तो दिव्य दर्शन भी नहीं। स्वदर्शन-स्थिति में स्थित रहने वाले चलते-फिरते नैचुरल रूप में अपने दिव्य संकल्प, दिव्य दृष्टि, दिव्य बोल, दिव्य कर्म द्वारा अन्य आत्माओं को भी दिव्य मूर्त अनुभव होंगे। साधारणता नहीं दिखाई देगी, दिव्यता दिखाई देगी। तो वर्तमान समय ब्राह्मण आत्माओं को दिव्यता का अनुभव करना है। देवता भविष्य में बनेंगे। अभी दिव्यता स्वरूप होना है। दिव्यता स्वरूप सो देवता स्वरूप। फरिश्ता अर्थात् दिव्यता स्वरूप। दिव्यता की शक्ति साधारणता को समाप्त कर देती है। जितनी-जितनी दिव्यता की शक्ति हर कर्म में लायेंगे उतना ही सबके मन से, मुख से स्वत: ही यह बोल निकलेंगे कि ‘यह दिव्य दर्शनीय मूर्त हैं।’ अनेक भक्तों को जो दर्शन के अभिलाषी हैं, ऐसे दर्शन-अभिलाषी आत्माओं के सामने आप स्वयं दिव्य दर्शन मूर्त प्रत्यक्ष होंगे तब ही सर्व आत्मायें दर्शन कर प्रसन्न होंगी। और प्रसन्न्ता के कारण आप दिव्य दर्शनीय आत्माओं पर प्रसन्नता के पुष्प वर्षा करेंगी। हरेक आत्मा के द्वारा यही प्रसन्नता के बोल निकलेंगे, जन्मजन्म की जो प्यास थी वा आश थी कि मुक्ति को प्राप्त हो जाएं वा एक झलक मात्र दर्शन हो जाएं, आज मुक्ति वा मोक्ष का अनेक जन्मों का संकल्प पूरा हो गया। वा दर्शन के बजाए दर्शनीय मूर्त मिल गए। हमारे ईष्ट हमें मिल गए। इसी थोड़े समय की प्राप्ति के नशे और खुशी में जन्म-जन्म के दुख दर्द भूल जायेंगे। थोड़े से समय की यह समर्थ स्थिति आत्माओं को यथाशक्ति भावना के फलस्वरूप कुछ पापों से भी मुक्त कर देगी। इसलिए आत्मायें स्वयं को यथा शक्ति हल्का अनुभव करेंगी। इसलिए ही पाप हरो देवा वा पाप नष्ट करने वाली देवी, शक्ति, जगत मां यह बोल जरूर बोलते हैं। किसी भी देवी वा देवता के पास जाते हुए यह भावना वा निश्चय रखते हैं कि यह हमारे पाप नाश कर ही लेंगे। और अब अन्त में देवताओं के साथ गुरू लोग भी यही टैम्पटेशन देते हैं कि मैं तुम्हारे पाप नाश कर दूँगा। भक्त भी इसी भरोसे से गुरू करते हैं। लेकिन यह रसम आप दिव्य दर्शनीय आत्माओं से प्रत्यक्ष रूप में होने का यादगार चला आ रहा है। ऐसे जल्दी ही यह दिव्य दृश्य विश्व के सामने आया कि आया! अभी अपने आपको देखो कि हम दिव्य दर्शनीय मूर्त दर्शन योग्य, सर्व शृंगार सम्पन्न बने हैं? बाप समान पाप कटेश्वर स्वरूप में स्थित हैं? पाप कटेश्वर वा पाप हरनी तब बन सकते, जब याद के ज्वाला स्वरूप बनेंगे - ऐसे बने हैं? दर्शन के लिए पर्दा खोलते हैं, पर्दा हटता और दर्शन होता है। ऐसे सम्पन्न दर्शनीय स्वरूप बने हो जो समय का पर्दा हट जाए और आप दिव्य दर्शनीय मूर्त प्रैक्टिकल प्रत्यक्ष हो जाओ। वा दर्शनीय मूर्त अभी तक सम्पन्न सज रहे हो? दर्शन सदा सम्पन्न स्वरूप का होता है। तो ऐसे तैयार हो वा होना है! वा यही सोचते हो कि समय आयेगा तब तैयार होंगे! जो समय पर तैयार होंगे तो वह अपनी ही तैयारी में होंगे वा दर्शनीय मूर्त बनेंगे? वह स्व प्रति रहेंगे, न कि विश्व प्रति। वह स्वकल् याणकारी होंगे और वह विश्व-कल्याणकारी। अन्त का टाइटल विश्व-कल्याणकारी है न कि सिर्फ स्व-कल्याणकारी। स्व-कल्याणकारी सो विश्व-कल्याणकारी, डबल कार्य करनेवाले ही डबल ताजधारी बनेंगे। सिर्फ स्व-कल्याणकारी डबल ताजधारी नहीं बन सकते। राज्य में आ सकते हैं लेकिन राज्य अधिकारी नहीं बन सकते हैं। तो समय प्रमाण अभी पुरूषार्थ की गति तीव्र है! अभी याद की शक्ति और तीव्रगति से बढ़ाओ। अभी साधारण स्वरूप में है। इसलिए कभी भी परिस्थितियों के वश धोखा मिल जायेगा। शक्तिशाली याद की भट्ठी में रहेंगे तो सेफ रहेंगे। सेवा के झंझट से भी परे हो जाओ। जब सेवा में क्या-क्यों, तू-मैं, तेरा-मेरा आ जाता है तो सेवा भी झंझट हो जाती है। तो इस झंझट से भी परे हो जाओ। सेवा के पीछे स्वमान न भूलो। जिस सेवा में शक्तिशाली याद नहीं तो उस सेवा में सफलता कम और स्वयं को, और और को भी परेशानी ज्यादा। नाम की सेवा नहीं - लेकिन काम की सेवा करो। इसको कहा जाता है - शक्ति सम्पन्न सेवा। तो ऐसे नाजुक समय आने हैं, जिसमें याद की शक्ति ही सेफ्टी का साधन है ना। ऐसे याद की शक्ति आपके चारों ओर सर्व शस्त्रधारी सेफ्टी के साधन है। इसलिए सदा स्वयं को, सेवा स्थान को वा प्रवृत्ति के स्थान को और आने वाले सर्व सेन्टर्स के विद्यार्थियों को याद की शक्ति-स्वरूप वृत्ति और वायुमण्डल में लाओ। अभी साधारण याद की स्थिति सेफ्टी का साधन नहीं बन सकती।

हार और वार। माया से किसी भी प्रकार की हार और व्यक्ति तथा वायुमण्डल का वार साधारण याद वालों को धोखे में ला देगा। इसलिए बापदादा पहले से ही सभी बच्चों को ईशारा दे रहे हैं कि शक्तिशाली याद का वायुमण्डल बनाओ। जिससे स्वयं भी सेफ, ब्राह्मण आत्माओं को भी सहयोग और अन्य अज्ञानी आत्माओं को भी आपकी शान्ति और शक्ति का सहयोग मिलेगा। समझा-अच्छा!

ऐसे सर्व स्वदर्शनधारी, विश्व दिव्य दर्शनधारी, दिव्यता मूर्त, सर्व की भावना को सम्पन्न करने वाले, सर्व के मास्टर पाप कटेश्वर बन पाप हरण करने वाले, शान्ति-शक्ति देवा, श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का शक्ति सम्पन्न यादप्यार और नमस्ते।’’

टीचर्स बहिनों के साथ-अव्यक्त बापदादा की मुलाकात

सभी टीचर्स हैं ही ‘ज्वाला-स्वरूप’। इस ज्वाला-स्वरूप के द्वारा अनेक आत्माओं की निर्बलता को दूर करने वाली। टीचर्स अर्थात् शिव-शक्ति-कम्बाइण्ड रहने वाली। शिव के बिना शक्ति नहीं, शक्ति के बिना शिव नहीं। हर सेकण्ड, हर श्वास ‘बाप और आप’ कम्बाइण्ड। तो ऐसे शिव-शक्ति स्वरूप निमित्त आत्मायें हो ना! कोई भी समय साधारण याद न हो। क्योंकि स्टेज पर हैं ना! तो स्टेज पर हर समय कैसे बैठते हैं? कैसे कार्य करते हैं? अलर्ट होकर करेंगे ना! साधारण एक्टिविटी नहीं करेंगे। सदा अलर्ट होकर हर काम करेंगे। सेवाकेन्द्र स्टेज है, घर नहीं है, स्टेज है। स्टेज पर सदा अटेन्शन रहता है और घर में अलबेले हो जाते हैं। तो यह सेवाकेन्द्र सेवा की स्टेज है। इसलिए सदा ज्वालास्व रूप, शक्ति-स्वरूप। स्नेही भी हैं लेकिन स्नेह अकेला नहीं। स्नेह के साथ शक्ति रूप भी हो। अगर अकेला स्नेही रूप है, शक्ति रूप नहीं है तो कभी भी धोखा मिल सकता है। इसलिए स्नेही और शक्ति रूप दोनों कम्बाइन्ड। दोनों का बैलेन्स। इसको कहा जाता है - नम्बरवन योग्य टीचर। तो सदा इस स्मृति में रहने वाले विजयी हैं ही। विजय होगी या नहीं, यह नहीं। हैं ही। विजय ऐसी आत्माओं को जन्म-सिद्ध अधिकार के रूप में प्राप्त है। विजय के लिए मेहनत नहीं करनी पड़ती लेकिन विजय स्वयं माला बन गले में पिरोये, इसको कहा जाता है - ‘विजयी रत्न।’ तो सभी ऐसे विजयी रतन बन आगे बढ़ो और औरों को आगे बढ़ाओ। सभी सन्तुष्ट और खुश हैं ना! सेवा में सन्तुष्ट, स्व से सन्तुष्ट और आने वाले परिवार से सन्तुष्ट। तीनों ही सन्तुष्टता, इसको कहते हैं - सन्तुष्ट आत्मा। टीचर का अर्थ ही है - मास्टर दाता बन सहयोग देने वाली। ड्रामा में टीचर बनना यह भी एक गोल्डन चान्स है। इसी गोल्डन चांस को कामय रखते उड़ते रहो और उड़ाते रहो।

पार्टियों से मुलाकात

सभी बेफिकर बादशाह हो ना? अभी भी बादशाह और अनेक जन्म भी बादशाह! जो अभी बेफिकर बादशाह नहीं बनते तो भविष्य के भी बादशाह नहीं बनते। अभी की बादशाही जन्म-जन्म की बादशाही के अधिकारी बना देती है। कोई फिकर रहता है? चलते-चलते कोई भी सरकमस्टांस होते,पेपर आते तो फिकर तो नहीं होता? क्योंकि जब सब कुछ बाप के हवाले कर दिया तो फिकर किस बात का। जब मेरा-पन होता है तब फिकर होता। जब बाप के हवाले कर दिया तो बाप जाने और बाप का काम जाने! स्वयं बेफिकर बादशाह। याद की मौज में रहो और सेवा करते रहो। याद में रह सेवा करो इसी में ही मौज है। मौजों के युग की मौजें मनाते रहो। यह मौज सतयुग में भी नहीं होगी। यह ईश्वरीय मौजें हैं। वह देवताई मौजें होंगी। ईश्वरीय मौजों का समय अभी है। इसलिए मौज मनाओ, मूँझो नहीं जहाँ मूँझ है वहाँ मौज नहीं। किसी भी बात में मूँझना नहीं, क्या होगा, कैसे होगा! यह तो नहीं होगा.....यह है मूँझना। जो होता है वह अच्छा और कल्याणकारी होता है इसलिए मौज में रहो। सदा यही टाइटल याद रखो कि हम बेफिकर बादशाह हैं। तो पुरूषार्थ की रफ्तार तीव्र हो जायेगी। मौज करो, मौज में रहो, कोई भी बात को सोचो नहीं, बाप सोचने वाले बैठा है, आप असोच बन जाओ।

आस्ट्रेलिया तथा लंदन निवासी बच्चों के प्रति बापदादा ने टेप में यादप्यार भरी

सर्व पद्मापद्म भाग्यवान आत्माओं को बापदादा पद्मगुणा यादप्यार दे रहे हैं। सभी ने जो भी विशेष सेवा के प्लैन बनाये और प्रैक्टिकल में लाये वह हर बच्चे के विशेष प्लैन में विशेषता रही और जहाँ विशेषता है वहाँ सफलता समाई हुई है। विशेष आत्मायें बन विशेष कार्य के उमंग उत्साह में रहने वाले बच्चे बहुत-बहुत यादप्यार के पात्र आत्मायें हैं। अभी भी बापदादा के सामने साकार स्वरूप में ऐसे विशेष बच्चे हैं और एक-एक बच्चे की विशेषताओं के स्वरूप को देखते हुए बापदादा मुबारक भी दे रहे हैं और साथ-साथ सदा एकरस उमंग उत्साह में रहने का विशेष वरदान भी दे रहे हैं। संकल्पों द्वारा, पत्रों द्वारा रूह-रूहान द्वारा जो भी सोचते हो, बातें करते हो वह बाप के पास पहूँचती हैं। और बापदादा भी ऐसे बच्चों को सदा रिटर्न करते हैं और अभी भी रिटर्न में मुबारक के साथ-साथ ‘अमर भव’ का विशेष वरदान दे रहे हैं। सेवा अच्छी वृद्धि को पा रही है इससे सिद्ध है कि सेवाधारी भी स्व की वृद्धि की स्थिति में आगे बढ़ रहे हैं। प्रत्यक्ष करने का दृढ़ संकल्प अच्छा सबके दिल में है और अवश्य प्रत्यक्षता का झण्डा जल्दी लहरायेगा। सभी अपनी-अपनी विशेषता सहित, नाम सहित यादप्यार स्वीकार करना। जनक बच्ची भी (आस्ट्रेलिया) पहुँच रही है। रमता योगी तो है ही लेकिन आज बापदादा ने उड़ता योगी की विशषतायें सुनाई हैं। ऐसी विशेषता स्वरूप बच्चे सदा बाप के साथ हैं। सदा बाप की पालना में रह औरों को भी बाप की पालना का अनुभव कराते रहते हैं। निर्मल आश्रम (निर्मला बहन) यह भी बहुत हिम्मत और उत्साह से आगे बढ़ रही है और सदा शीतलता की विशेषता से विजयी रही है और अमर विजयी रत्न है। अच्छा - जैसे सभी उमंग उत्साह से सेवा में आगे बढ़ रहे हैं, उस उमंग उत्साह की खुशबू बापदादा के पास पहुँच रही है और बापदादा ऐसी सेवाधारी आत्माओं का सदा सफलता की मालाओं से स्वागत करते हैं। और आगे भी विशेष आवाज़ फैलाने के लिए जैसे उमंग से प्लैन बना रहे हैं वह बनाते हुए सफलता को पाते रहेंगे। अच्छा - एक-एक को अपने नाम से यादप्यार.....।